1. कर्म करो, फल की चिंता मत करो
श्लोक: “कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।”मनुष्य का अधिकार केवल कर्म पर है, फल पर नहीं। इसलिए अपना कर्तव्य पूरी निष्ठा से करो, फल की चिंता छोड़ दो।
2. आत्मा अमर है
श्लोक: “न जायते म्रियते वा कदाचित्…”आत्मा न जन्म लेती है, न मरती है। वह अविनाशी, अजर, अमर और शाश्वत है।
3. धर्म के मार्ग पर चलो
जो उचित हो, जो सत्य हो, जो कर्तव्य हो – वही धर्म है। जीवन में धर्म का पालन सबसे ऊपर है।
4. मोह और अज्ञान को त्यागो
मोह (संस्कार, रिश्ते, देहभाव) हमें सच्चे कर्तव्य से भटकाते हैं। ज्ञानी व्यक्ति इनसे ऊपर उठता है।
5. स्थिर बुद्धि बनो
श्लोक: “स्थितप्रज्ञस्य का भाषा…”जो सुख-दुख, लाभ-हानि, जय-पराजय में स्थिर रहता है, वही ज्ञानी है।
6. समत्व की भावना रखो
श्लोक: “समोऽहं सर्वभूतेषु…”सभी प्राणियों में ईश्वर का अंश है। किसी से द्वेष या पक्षपात मत करो।
7. भक्ति, ज्ञान और कर्म – तीनों मार्ग श्रेष्ठ हैं
कर्मयोग (कर्तव्य), ज्ञानयोग (बुद्धि), और भक्तियोग (श्रद्धा) – तीनों से परमात्मा को पाया जा सकता है।
8. जब-जब अधर्म बढ़ेगा, मैं अवतार लूंगा
श्लोक: “यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत…”जब संसार में अधर्म बढ़ेगा और धर्म का नाश होगा, तब मैं अवतार लेकर आता हूँ।
9. मन ही मनुष्य का मित्र और शत्रु है
यदि मन पर विजय पा ली, तो वह मित्र है। यदि मन पर नियंत्रण नहीं, तो वही शत्रु बन जाता है।
10. निःस्वार्थ सेवा ही सच्चा योग है
जो बिना किसी स्वार्थ के दूसरों की सेवा करता है, वही योगी और सच्चा साधक है।
11. स्वधर्म श्रेष्ठ है, परधर्म से बचो
श्लोक: “श्रेयान् स्वधर्मो विगुणः परधर्मात्स्वनुष्ठितात्”अपना धर्म (कर्तव्य) चाहे जैसे भी हो, वह दूसरों के धर्म से श्रेष्ठ है।किसी और की राह पर चलने से भ्रम और पतन होता है।
12. सच्चा योगी वही है जो सबमें ईश्वर को देखे
श्लोक: “यो मां पश्यति सर्वत्र सर्वं च मयि पश्यति…”जो मुझे (भगवान को) हर प्राणी में और हर प्राणी को मुझमें देखता है, वह सच्चा योगी है।
13. रज, तम और सत्त्व – तीन गुण
सम्पूर्ण सृष्टि में तीन गुण हैं:
सत्त्व (पवित्रता, ज्ञान)
रज (लालसा, क्रिया)
तम (अज्ञान, आलस्य)
इनसे ऊपर उठकर ही आत्मा मुक्त होती है।
14. सच्चा ज्ञान क्या है?
वह ज्ञान जो आत्मा, परमात्मा और इस संसार के असली स्वरूप को समझने में मदद करे, वही सच्चा ज्ञान है।
15. भक्ति से मुक्ति संभव है
जो व्यक्ति एकनिष्ठ भक्ति करता है, भगवान उसकी सभी बाधाएँ दूर कर देते हैं और उसे मोक्ष प्रदान करते हैं।
16. मोक्ष का मार्ग – आत्मसमर्पण
श्लोक: “सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज…”हे अर्जुन! सारे धर्मों (संकीर्ण विचारों) को छोड़कर मुझे पूर्ण रूप से समर्पित हो जाओ। मैं तुम्हें सभी पापों से मुक्त करूंगा।
17. जो हुआ वह अच्छा हुआ, जो हो रहा है वह अच्छा हो रहा है
यह विचार गीता से प्रेरित है – जो भी होता है, परमात्मा की इच्छा से होता है और उसका कोई न कोई उद्देश्य होता है।
18. मौन, संतोष, आत्मसंयम – श्रेष्ठ तप है
वाणी का संयम, मन का शुद्ध विचार, और शरीर का नियंत्रण – यही तप का वास्तविक रूप है।
19. अहंकार का त्याग जरूरी है
जो व्यक्ति ‘मैं’ और ‘मेरा’ को छोड़ देता है, वही सच्चा ज्ञानी और योगी है। अहंकार विनाश का कारण बनता है।
20. सभी जीव एक ही परमात्मा के अंश हैं
हर आत्मा ईश्वर का अंश है। इसलिए सबका सम्मान करो, सबमें ईश्वर को देखो।
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