🏚️ दादी का घर
जब मैं बच्चा था, मेरी दादी हमारे ही कॉम्प्लेक्स में ऊपर वाले फ्लोर पर रहती थीं। यह एक पुरानी इमारत थी, जिसमें सिर्फ़ बारह फ्लैट थे।
हम लोग अपार्टमेंट 2868 में रहते थे, जबकि दादी 2874 में रहती थीं।
दादी बरसों से अकेली रहती थीं।
लेकिन उनके घर में बेडरूम तक जाने वाले रास्ते में एक आलमारी थी, जिसमें हर महीने कुछ अजीब और रहस्यमय होता था।
रहस्यमयी आवाज़ें
हर महीने दादी मेरी माँ को बुलातीं और कहतीं—
“मेरी आलमारी से रात को अजीब आवाज़ें आती हैं, ज़रा देख तो लो।”
एक दिन माँ व्यस्त थीं, तो उन्होंने मुझे भेज दिया।
जब मैं दादी के घर पहुँचा और आलमारी खोली, तो दंग रह गया।
अंदर कपड़े उलटे-पुलटे थे, बक्से टूटे पड़े थे और उनका सामान बिखरा पड़ा था। जैसे किसी तूफ़ान ने सिर्फ़ आलमारी को तहस-नहस कर दिया हो, जबकि बाकी घर बिल्कुल ठीक था।
मैंने दादी से पूछा, “क्या हर महीने ऐसा ही होता है?”
उन्होंने गंभीर होकर कहा, “हाँ… बीस साल से यही हो रहा है।”
उस वक़्त मैंने इसे गंभीरता से नहीं लिया और बस आलमारी को ठीक कर दिया।
मौत और वापसी
करीब दो साल बाद, मेरी माँ का अचानक देहांत हो गया। खर्च बचाने और सहारे के लिए दादी हमारे साथ नीचे रहने आ गईं।
शिफ्टिंग के दौरान, पिताजी ने मुझे दादी के बेडरूम से कुछ कागज़ लाने भेजा।
मन ही मन मैं घबराया हुआ था, फिर भी ऊपर चला गया।
जैसे ही मैं आलमारी के पास से गुज़रा, अंदर से ज़ोर-ज़ोर की ठक-ठक की आवाज़ें आने लगीं—मानो कोई अंदर से बाहर निकलने की कोशिश कर रहा हो।
मैंने खुद को समझाया और आगे बढ़ गया।
फँस जाना
जैसे ही मैंने बेडरूम में कदम रखा, दरवाज़ा ज़ोर से बंद हो गया और मैं अंदर कैद हो गया।
मैंने पूरी ताक़त से दरवाज़ा खोलने की कोशिश की, लेकिन जैसे कोई बाहर से उसे कसकर पकड़े हुए था।
आख़िरकार मैंने पूरी ताक़त लगाई और दरवाज़ा खोलने में सफल रहा। मैं डर के मारे बाहर की ओर भागा।
भागते हुए मैंने देखा कि आलमारी ज़ोर-ज़ोर से हिल रही थी और अंदर से भयानक धमाके हो रहे थे—मानो वह कभी भी फट पड़ेगी।
आख़िरी दिन
मैं नीचे पहुँचा और घबराकर चाबियाँ पिताजी को फेंकते हुए बोला—
“अब आप ही जाइए! मैं तो वहाँ कभी नहीं जाऊँगा।”
उस दिन के बाद हमने उस घटना का ज़िक्र कभी नहीं किया। दादी के घर से सामान लाने का काम हमेशा पिताजी ही करते।
हमने अपनी ज़िंदगी आगे बढ़ा ली, लेकिन उस आलमारी में हुई अजीब घटनाएँ आज भी मेरी यादों में ज़िंदा हैं।
कभी-कभी सोचता हूँ—क्या वह सब किसी आत्मा का खेल था, या सच में उस आलमारी में कोई और भयानक राज़ छिपा है…
नई शुरुआत
दादी अब हमारे साथ ही रहने लगी थीं। घर में उनका कमरा अलग था, लेकिन वह आलमारी वाला किस्सा सबके ज़ेहन में ताज़ा था। खासकर मेरे।
मगर अजीब बात यह थी कि जब से दादी हमारे घर शिफ्ट हुईं, तब भी महीने में एक बार वही हलचल होने लगती—बस अब उनके कमरे की आलमारी में।
रात के 12 बजे, मुझे अक्सर लगता जैसे अंदर कोई चल रहा हो। कपड़े हिलते, लकड़ी चरमराती, और कभी-कभी दरवाज़ा अपने आप खुल-बंद होता।
अनजाना रहस्य
एक रात मैंने हिम्मत करके दादी से पूछ ही लिया—
“दादी, आखिर इस आलमारी में है क्या?”
दादी ने चुपचाप मेरी ओर देखा। उनकी आँखों में डर और दर्द दोनों थे।
धीरे-धीरे उन्होंने बताया—
“ये आलमारी मेरे पति ने मुझे दी थी, तुम्हारे दादा ने। लेकिन शादी के कुछ साल बाद अचानक उनकी मौत हो गई। उसी दिन से ये आलमारी अपने आप हलचल करने लगी। मैंने कई पुजारी, ओझा-बाबा बुलाए… पर किसी को कुछ समझ नहीं आया। हर महीने एक रात ये आलमारी ऐसे उथल-पुथल मचाती है जैसे कोई कैद होकर बाहर आना चाहता हो।”
आधी रात का आतंक
कुछ ही दिनों बाद वही काली रात आई। ठीक बारह बजे, आलमारी ज़ोर-ज़ोर से हिलने लगी। लकड़ी चरमराने की आवाज़ पूरे घर में गूँज रही थी।
मैं और पिताजी दादी के कमरे में पहुँचे।
अचानक दरवाज़ा अपने आप खुला और भीतर से ठंडी हवा का झोंका निकला। सारे कपड़े हवा में उड़ने लगे, जैसे किसी अदृश्य ताकत ने उन्हें फेंक दिया हो।
तभी आलमारी के अंदर से एक साया बाहर निकला—लंबा, काला, और चेहरा बिल्कुल धुंधला। उसकी आँखें लाल जलती हुई अंगारों जैसी थीं।
दादी काँपते हुए बोलीं—
“मत आना… मुझे छोड़ दो!”
सच का सामना
वह साया सीधा दादी की तरफ बढ़ा। लेकिन तभी मुझे ख्याल आया—दादा की फोटो दादी के बिस्तर पर रखी थी। मैंने झट से फोटो उठाकर साये की तरफ बढ़ाई।
जैसे ही फोटो उसकी आँखों के सामने आई, वह चीख उठा। उसकी चीख इतनी भयानक थी कि कान फटने लगे।
अगले ही पल वह साया आलमारी के अंदर खिंच गया और दरवाज़ा अपने आप बंद हो गया।
आखिरी मोड़
हम सब हक्के-बक्के रह गए। दादी ने रोते हुए कहा—
“वो तुम्हारे दादा नहीं थे… बल्कि कोई और आत्मा थी, जो उनकी मौत के बाद से इस आलमारी में बंधी हुई है। शायद उस दिन कुछ गलत हुआ था, कोई अधूरी क्रिया, और उसकी वजह से ये आत्मा यहाँ फँस गई।”
उसके बाद से हमने उस आलमारी को ताले में बंद कर दिया। पर सच कहूँ—आज भी कभी-कभी आधी रात को ठक-ठक की आवाज़ सुनाई देती है, जैसे कोई अंदर से दरवाज़ा पीट रहा हो।
दादी का डरावना आलमारी
सुराग की तलाश
आलमारी को हमने ताले में बंद कर दिया था, लेकिन मेरा मन चैन नहीं ले रहा था।
क्योंकि अगर वो आत्मा दादा नहीं थे, तो आखिर कौन था? और क्यों वो दादी के इतने करीब मंडरा रहा था?
एक दिन मैंने दादी से उनके पुराने कागज़ात और डायरी देखने की ज़िद की। शुरू में उन्होंने टाल दिया, पर आखिरकार उन्होंने मुझे एक पुराना बक्सा दिया।
उस बक्से में कुछ पुरानी चिट्ठियाँ थीं। उनमें से एक पत्र मेरे हाथ लगा, जिस पर लिखा था—
“अगर मैं ज़िंदा ना रहा तो समझ लेना ये सब तुम्हारी वजह से हुआ।”
पत्र पर किसी “शेखर” नाम के आदमी का हस्ताक्षर था।
दादी का अतीत
मैंने दादी से पूछा—“ये शेखर कौन था?”
दादी की आँखें भर आईं। उन्होंने धीमी आवाज़ में कहा—
“शेखर… मेरा पहला प्यार था। शादी से पहले हम एक-दूसरे को चाहते थे। लेकिन परिवार वालों ने हमारी शादी नहीं होने दी। मुझे तुम्हारे दादा से ब्याह दिया गया।
शेखर ने बहुत विरोध किया… और एक दिन अचानक उसकी मौत हो गई। सबने कहा उसने आत्महत्या की, लेकिन मैं जानती हूँ… वो मुझे कभी नहीं छोड़ सकता था।”
अब मुझे सब समझ आने लगा। वो आत्मा दादा की नहीं, बल्कि शेखर की थी!
आत्मा का प्रकोप
उस रात फिर वही हलचल शुरू हुई। आलमारी जोर-जोर से हिलने लगी। मैंने साहस जुटाकर ताला खोला।
जैसे ही दरवाज़ा खुला, शेखर की आत्मा बाहर आ गई। इस बार उसका चेहरा साफ दिख रहा था—आँखों में दर्द और क्रोध दोनों थे।
वह दादी की तरफ बढ़ा और गरजते हुए बोला—
“तुम्हें वादा था कि तुम मेरी बनोगी… फिर क्यों धोखा दिया? क्यों मुझे अकेला छोड़ दिया?”
दादी ज़मीन पर गिरकर रोने लगीं—
“मैंने तुम्हें कभी नहीं छोड़ा शेखर… मजबूरी थी, मजबूरी!”
अंतिम टकराव
आत्मा की चीख से दीवारें कांप रही थीं। पिताजी ने हनुमान चालीसा का पाठ शुरू कर दिया, लेकिन आत्मा और भी हिंसक होती गई।
तभी मैंने दादी का हाथ पकड़कर ज़ोर से कहा—
“अगर सच में तुमसे प्यार था, तो ये तुम्हारी आत्मा को शांति क्यों नहीं मिली? क्या प्यार जबरदस्ती से साबित होता है? अगर तुम दादी से सच में जुड़े थे, तो उन्हें कष्ट क्यों दे रहे हो?”
शेखर की आत्मा कुछ पल के लिए रुक गई। उसकी आँखों से आँसू बहने लगे।
धीरे-धीरे उसका चेहरा धुंधला होने लगा।
उसने आखिरी बार दादी की तरफ देखा और बोला—
“काश… ज़माना हमें अलग ना करता।”
और फिर वह धुएँ में बदलकर गायब हो गया।
अंत… या नई शुरुआत?
उस दिन के बाद आलमारी ने कभी हलचल नहीं की। दादी ने चैन की सांस ली।
लेकिन… एक रहस्य अभी भी बाकी था।
जब मैंने वो पुरानी चिट्ठियाँ दोबारा देखीं, तो उनमें एक और पत्र मिला। उसमें लिखा था—
“अगर मेरा प्यार अधूरा रह गया, तो मैं लौटकर ज़रूर आऊँगा। ना सिर्फ तुम्हें लेने… बल्कि तुम्हारे वंशजों को भी।”
ये पढ़कर मेरे पैरों तले ज़मीन खिसक गई।
क्या सच में कहानी ख़त्म हुई… या ये डरावना सिलसिला अब मेरी ज़िंदगी तक पहुँचने वाला है?
दादी का डरावना आलमारी
आलमारी से शेखर की आत्मा के जाने के बाद घर में शांति लौट आई।
दादी भी धीरे-धीरे संभल गईं और उनका डर कम हो गया।
समय बीता, हमने वो पुराना फ्लैट छोड़ दिया और नया घर ले लिया। दादी ने वह आलमारी वहीं छोड़ दी, क्योंकि उसमें दबी यादें बहुत दर्दनाक थीं।
उसके बाद कभी किसी अजीब घटना का सामना नहीं हुआ।
पर कभी-कभी रात में मुझे लगता है जैसे कोई मेरे कमरे की खिड़की के बाहर खड़ा मुझे देख रहा हो।
शायद यह मेरा वहम है… या शायद सचमुच शेखर की अधूरी चाहत का असर।
आज दादी हमारे बीच नहीं हैं। लेकिन उनके जाने के बाद भी, जब-जब मैं उस पुरानी कहानी को याद करता हूँ, मेरी रूह कांप जाती है।
कहानी चाहे खत्म हो चुकी हो…
पर आलमारी का डर और उस अधूरे प्यार की गूँज हमेशा ज़हन में बनी रहती है।
✨ और इस तरह “दादी का डरावना आलमारी” की कहानी यहीं खत्म होती है।
☝“क्या आपकी रूह कांप गई? अगर हाँ, तो लाइक करें, पेज फॉलो करें और कमेंट में हमें बताएं कि आपको सबसे डरावना हिस्सा कौन सा लगा!”
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