बारहवीं शताब्दी में इस गौरवशाली विश्वविद्यालय का पतन हुआ। 1193 ई. में तुर्क सेनापति बख्तियार खिलजी ने बिहार पर आक्रमण किया और नालंदा विश्वविद्यालय को जलाकर नष्ट कर दिया। इसका विशाल पुस्तकालय कई महीनों तक जलता रहा और लाखों पांडुलिपियाँ राख हो गईं। इसके बाद धीरे-धीरे नालंदा उजड़ गया और शिक्षा का यह महान केंद्र इतिहास के पन्नों में सिमट गया।
इसके बाद सदियों तक नालंदा खंडहर के रूप में पड़ा रहा। 19वीं शताब्दी में ब्रिटिश पुरातत्वविदों और इतिहासकारों ने इसके अवशेषों की खोज की। सर अलेक्जेंडर कनिंघम और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) ने नालंदा के अवशेषों की खुदाई की। यहाँ से अनेक विहार, स्तूप, मूर्तियाँ, शिलालेख और अन्य ऐतिहासिक धरोहरें मिलीं, जिससे इसका इतिहास प्रमाणित हुआ।
1995 में नालंदा विश्वविद्यालय के खंडहरों को यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर स्थल घोषित किया गया। भारत सरकार और बिहार सरकार ने इसे पुनर्जीवित करने की योजना बनाई। 2006 में तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम ने नालंदा विश्वविद्यालय को आधुनिक स्वरूप में पुनः स्थापित करने का प्रस्ताव रखा। इसके बाद 2010 में संसद ने “नालंदा विश्वविद्यालय अधिनियम” पारित किया और 2014 में अंतरराष्ट्रीय सहयोग से नया नालंदा विश्वविद्यालय आधिकारिक रूप से शुरू किया गया। यह राजगीर (बिहार) में स्थित है और इसमें एशिया व अन्य देशों के छात्र शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। यह विश्वविद्यालय प्राचीन नालंदा की तरह फिर से वैश्विक शिक्षा और अनुसंधान का केंद्र बनने की दिशा में आगे बढ़ रहा है।
आज नालंदा विश्वविद्यालय प्राचीन गौरव और आधुनिक शिक्षा का संगम है। जहाँ एक ओर इसके खंडहर इतिहास की गवाही देते हैं वहीं दूसरी ओर आधुनिक नालंदा विश्वविद्यालय 21वीं शताब्दी में ज्ञान का नया दीप जलाकर पूरे एशिया और विश्व में भारत की शिक्षा परंपरा को पुनर्जीवित कर रहा है।
नालंदा विश्वविद्यालय का विस्तृत इतिहास – प्राचीन काल से भविष्य तक
नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना गुप्त सम्राट कुमारगुप्त प्रथम ने पाँचवीं शताब्दी में की थी। गुप्त वंश, हर्षवर्धन और पाल वंश के संरक्षण में यह लगभग 800 वर्षों तक ज्ञान का महान केंद्र बना रहा। यहाँ हजारों विद्यार्थी और शिक्षक रहते थे और बौद्ध धर्म सहित अनेक विषय पढ़ाए जाते थे। इसके विशाल पुस्तकालय "धर्मगंज" में लाखों पांडुलिपियाँ संग्रहित थीं। विदेशी यात्री ह्वेनसांग और इत्सिंग ने नालंदा की शिक्षा प्रणाली का विस्तार से वर्णन किया।
बारहवीं शताब्दी में 1193 ई. में बख्तियार खिलजी ने आक्रमण कर इसे पूरी तरह जला दिया। पुस्तकालय की पांडुलिपियाँ महीनों तक जलती रहीं और इसके बाद नालंदा पूरी तरह उजड़ गया। इसके अवशेष सदियों तक खंडहर बने रहे।
उन्नीसवीं शताब्दी में ब्रिटिश पुरातत्वविदों ने इसकी खुदाई की। अलेक्जेंडर कनिंघम और बाद में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) ने यहाँ से मूर्तियाँ, विहार, स्तूप, शिलालेख और अन्य धरोहरें खोजीं। इससे नालंदा का गौरवशाली इतिहास फिर सामने आया।
बीसवीं शताब्दी में नालंदा के महत्व को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्वीकार किया गया। 1951 में नालंदा के खंडहरों में “नालंदा महोत्सव” आयोजित किया गया। 1995 में यूनेस्को ने इसे विश्व धरोहर स्थल घोषित किया। इससे नालंदा को वैश्विक पहचान मिली।
इक्कीसवीं शताब्दी में नालंदा विश्वविद्यालय को पुनर्जीवित करने की योजना बनी। 2006 में राष्ट्रपति डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम ने इसका प्रस्ताव रखा। इसके बाद 2010 में भारतीय संसद ने “नालंदा विश्वविद्यालय अधिनियम” पारित किया। 2014 में नया नालंदा विश्वविद्यालय बिहार के राजगीर में स्थापित किया गया। यह एक अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय है जिसे भारत, चीन, जापान, दक्षिण कोरिया, थाईलैंड, सिंगापुर सहित कई देशों का सहयोग प्राप्त है।
आधुनिक नालंदा विश्वविद्यालय का उद्देश्य प्राचीन नालंदा की परंपरा को जीवित करना है। यहाँ इतिहास, पारिस्थितिकी, बौद्ध अध्ययन, अंतरराष्ट्रीय संबंध, पर्यावरण विज्ञान, भाषा और साहित्य जैसे विषयों पर शिक्षा और शोध कार्य किए जा रहे हैं। यह विश्वविद्यालय पूरी तरह से “ग्रीन कैंपस” के रूप में विकसित किया गया है। यहाँ सौर ऊर्जा, वर्षा जल संचयन और प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण किया जाता है।
2023 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नए नालंदा विश्वविद्यालय परिसर का उद्घाटन किया। यह परिसर पूरी तरह आधुनिक है लेकिन इसमें प्राचीन नालंदा की स्थापत्य शैली और सांस्कृतिक विरासत को भी दर्शाया गया है। यहाँ विश्वभर से विद्यार्थी आ रहे हैं और इसे 21वीं शताब्दी का वैश्विक शिक्षा केंद्र बनाने की दिशा में कार्य हो रहा है।
नालंदा विश्वविद्यालय से जुड़ी अद्भुत बातें और रोचक इतिहास
नालंदा विश्वविद्यालय दुनिया का पहला आवासीय (Residential) विश्वविद्यालय था, जहाँ विद्यार्थी और शिक्षक साथ रहते थे।
यहाँ एक समय में 10,000 से अधिक विद्यार्थी और 2,000 से अधिक आचार्य रहते थे।
इसका पुस्तकालय “धर्मगंज” इतना विशाल था कि आक्रमण के बाद इसकी पांडुलिपियाँ लगातार तीन महीने तक जलती रहीं।
चीन के महान यात्री ह्वेनसांग (Xuanzang) ने लिखा कि नालंदा में प्रवेश पाना आज की सबसे कठिन यूनिवर्सिटी परीक्षा पास करने जैसा था।
नालंदा केवल शिक्षा का ही नहीं बल्कि अंतरराष्ट्रीय सांस्कृतिक आदान-प्रदान का केंद्र था, जहाँ से ज्ञान पूरे एशिया तक पहुँचा।
नालंदा की पढ़ाई में केवल धार्मिक शिक्षा नहीं बल्कि गणित, खगोलशास्त्र, चिकित्सा, दर्शन, तर्कशास्त्र जैसे विषय भी शामिल थे।
यह विश्वविद्यालय लगभग 800 साल तक लगातार चलने वाला शिक्षा का सबसे बड़ा केंद्र था।
आधुनिक नालंदा विश्वविद्यालय को 2014 में फिर से खोला गया, और 2023 में नया परिसर उद्घाटित हुआ।
नालंदा विश्वविद्यालय का इतिहास (Timeline Format)
413–455 ईस्वी – गुप्त सम्राट कुमारगुप्त प्रथम ने नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना की।
5वीं–6वीं शताब्दी – गुप्त वंश के संरक्षण में नालंदा विश्वविद्यालय तेजी से फला-फूला।
606–647 ईस्वी – सम्राट हर्षवर्धन ने नालंदा को बड़े पैमाने पर दान दिया और शिक्षा केंद्र के रूप में विकसित किया।
7वीं शताब्दी – चीनी यात्री ह्वेनसांग (Xuanzang) नालंदा आए और 12 साल तक यहाँ अध्ययन व अध्यापन किया।
8वीं शताब्दी – चीनी यात्री इत्सिंग (Yijing) नालंदा आए और यहाँ की शिक्षा प्रणाली का वर्णन किया।
8वीं–12वीं शताब्दी – पाल वंश के राजाओं (धर्मपाल, देवपाल आदि) ने नालंदा का संरक्षण किया और नए विहार व पुस्तकालय बनवाए।
1193 ईस्वी – तुर्क सेनापति बख्तियार खिलजी ने आक्रमण किया, नालंदा विश्वविद्यालय और उसके विशाल पुस्तकालय को जला दिया। लाखों पांडुलिपियाँ महीनों तक जलती रहीं।
13वीं–18वीं शताब्दी – नालंदा पूरी तरह उजड़ गया और खंडहर में बदल गया।
1861 ईस्वी – ब्रिटिश पुरातत्वविद अलेक्जेंडर कनिंघम ने नालंदा के अवशेषों की पहचान की।
1915–1937 ईस्वी – भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) ने नालंदा के अवशेषों की खुदाई की, जिसमें विहार, स्तूप, मूर्तियाँ और शिलालेख मिले।
1951 ईस्वी – बिहार में नालंदा महोत्सव की शुरुआत हुई।
1995 ईस्वी – नालंदा विश्वविद्यालय के खंडहर को यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल का दर्जा मिला।
2006 ईस्वी – राष्ट्रपति डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम ने आधुनिक नालंदा विश्वविद्यालय के पुनर्निर्माण का प्रस्ताव रखा।
2010 ईस्वी – भारत की संसद ने नालंदा विश्वविद्यालय अधिनियम पारित किया।
2014 ईस्वी – आधुनिक नालंदा विश्वविद्यालय बिहार के राजगीर में आधिकारिक रूप से शुरू हुआ।
2023 ईस्वी – प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नए नालंदा विश्वविद्यालय परिसर का उद्घाटन किया। यह परिसर आधुनिक सुविधाओं से युक्त और पर्यावरण अनुकूल (Green Campus) है।
भविष्य (21वीं शताब्दी) – नालंदा विश्वविद्यालय को फिर से वैश्विक शिक्षा और अनुसंधान का केंद्र बनाने का लक्ष्य है। यहाँ विश्वभर से विद्यार्थी आ रहे हैं और इसे 21वीं सदी का “ज्ञान का दीपक” कहा जा रहा है।
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