दीवाली का इतिहास और महत्व

दीवाली का इतिहास और महत्व

दीवाली भारत का सबसे प्रसिद्ध और भव्य त्योहार है इसे दीपावली भी कहा जाता है यह पर्व अंधकार पर प्रकाश की विजय का प्रतीक है दीवाली पूरे भारतवर्ष में बड़े हर्ष और उल्लास के साथ मनाई जाती है यह केवल एक धार्मिक उत्सव नहीं बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक एकता का प्रतीक भी है यह त्योहार हर भारतीय के जीवन में नई उम्मीद और सकारात्मकता का संचार करता है

दीपावली शब्द संस्कृत के दो शब्दों दीप और आवली से बना है दीप का अर्थ है प्रकाश और आवली का अर्थ है पंक्ति यानी दीपों की पंक्ति इस दिन लोग अपने घरों की सफाई करते हैं उन्हें सजाते हैं रंगोली बनाते हैं और दीपक जलाते हैं ताकि घर में समृद्धि और सौभाग्य का वास हो इस दिन हर व्यक्ति अपने भीतर की नकारात्मकता को दूर कर अपने जीवन में नई रोशनी का स्वागत करता है

दीवाली के इतिहास के पीछे कई पौराणिक और ऐतिहासिक कथाएँ जुड़ी हुई हैं उत्तर भारत में इसे भगवान श्रीराम के अयोध्या लौटने की खुशी में मनाया जाता है जब उन्होंने 14 वर्ष का वनवास पूरा किया और रावण का वध किया तब अयोध्या वासियों ने पूरे नगर में दीप जलाकर उनका स्वागत किया यह बुराई पर अच्छाई और असत्य पर सत्य की जीत का प्रतीक माना जाता है

दक्षिण भारत में दीवाली भगवान कृष्ण और नरकासुर राक्षस की कथा से जुड़ी है भगवान कृष्ण ने इस दिन नरकासुर का वध किया और लोगों को उसके अत्याचारों से मुक्ति दिलाई इसलिए इस दिन को ‘नरक चतुर्दशी’ के रूप में मनाया जाता है यह भी बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक है वहीं पश्चिम भारत में यह दिन माता लक्ष्मी की पूजा के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है क्योंकि समुद्र मंथन के समय इसी दिन लक्ष्मी जी प्रकट हुई थीं और धन-समृद्धि का प्रतीक बनीं

सिख धर्म में दीवाली का विशेष महत्व है इस दिन गुरु हरगोविंद जी को ग्वालियर के किले से रिहा किया गया था जिसे “बंदी छोड़ दिवस” कहा जाता है जैन धर्म में भी इस दिन भगवान महावीर ने निर्वाण प्राप्त किया था इस प्रकार यह त्योहार हर धर्म और संस्कृति में प्रकाश और स्वतंत्रता का प्रतीक है

दीवाली पाँच दिनों तक मनाई जाती है पहला दिन धनतेरस कहलाता है इस दिन लोग सोना चांदी या बर्तन खरीदते हैं जिसे शुभ माना जाता है दूसरा दिन नरक चतुर्दशी या छोटी दीवाली होती है इस दिन लोग अपने घरों की सजावट करते हैं और बुराइयों को दूर करने का प्रतीकात्मक कार्य करते हैं तीसरा दिन मुख्य दीवाली होता है जब लोग लक्ष्मी पूजन करते हैं दीप जलाते हैं और अपने घरों को रोशनी से भर देते हैं चौथा दिन गोवर्धन पूजा का होता है जिसमें भगवान कृष्ण द्वारा गोवर्धन पर्वत उठाने की कथा का स्मरण किया जाता है पाँचवाँ और अंतिम दिन भाई दूज कहलाता है जिसमें भाई-बहन के प्रेम का उत्सव मनाया जाता है

दीवाली का सामाजिक महत्व भी अत्यंत गहरा है यह त्योहार लोगों के बीच प्रेम और एकता का संदेश देता है इस दिन हर वर्ग के लोग एक-दूसरे से मिलते हैं मिठाइयाँ बाँटते हैं पुरानी नाराज़गियाँ भूलकर नए रिश्तों की शुरुआत करते हैं बच्चे पटाखे फोड़कर खुशियाँ मनाते हैं और बुजुर्ग प्रार्थना कर अपने घर परिवार की समृद्धि की कामना करते हैं

दीवाली केवल दीपों का त्योहार नहीं बल्कि आत्मा के जागरण का पर्व है यह हमें यह सिखाती है कि जैसे दीपक अंधकार मिटाकर प्रकाश फैलाता है वैसे ही हमें अपने जीवन से अज्ञान, क्रोध, ईर्ष्या और दुख के अंधकार को दूर करना चाहिए और ज्ञान, प्रेम, शांति और करुणा का दीप जलाना चाहिए यही जीवन का सच्चा प्रकाश है

आधुनिक समय में दीवाली ने एक पर्यावरणीय रूप भी ले लिया है अब लोग पटाखों की जगह दीयों और सजावट पर ज़ोर दे रहे हैं क्योंकि असली दीवाली तब होती है जब हमारे आस-पास खुशियाँ हों और प्रकृति सुरक्षित रहे दीवाली के अवसर पर हमें गरीबों की सहायता करनी चाहिए ताकि उनके जीवन में भी उजाला फैल सके यही असली मानवता है

दीवाली का संदेश हमें यह सिखाता है कि जीवन में चाहे कितनी भी अंधेरी रातें क्यों न हों अगर हम अपने भीतर विश्वास और सत्य का दीपक जलाए रखें तो हर अंधकार मिट सकता है यही संदेश हर दीपक हमें हर वर्ष दोहराता है जब हम उसे जलाते हैं और कहते हैं कि “जहाँ प्रकाश है वहाँ ईश्वर है”

“दीप जलाओ, दिलों में उजाला फैलाओ, हर अंधकार मिटाओ — यही है सच्ची दीपावली की पहचान।”


                                                                                                                                   – Written by Ashish 🌼

Post a Comment

0 Comments