नाथूराम विनायक गोडसे का जन्म 19 मई 1910 को महाराष्ट्र के पुणे जिले के बारामती में हुआ था। उनका परिवार एक चितपावन ब्राह्मण परिवार था। उनके पिता का नाम विनायक वामनराव गोडसे और माता का नाम लक्ष्मी था। बचपन में उनके तीन भाइयों की मृत्यु हो जाने के कारण यह माना गया कि परिवार पर पुत्र मृत्यु का शाप है, इसलिए नाथूराम को जन्म के समय लड़की की तरह पाला गया और उसकी नाक में नथ डाली गई, जिससे उसका नाम “नाथूराम” पड़ा। गोडसे की प्रारंभिक शिक्षा स्थानीय विद्यालयों में हुई, लेकिन उन्होंने उच्च शिक्षा पूरी नहीं की। वे किशोरावस्था में ही राष्ट्रवादी विचारों से प्रभावित हुए और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) तथा हिंदू महासभा से जुड़े। गोडसे हिंदू राष्ट्रवाद के कट्टर समर्थक थे। उनका मानना था कि भारत एक हिंदू राष्ट्र होना चाहिए, जिसमें हिंदू संस्कृति और परंपराएँ सर्वोच्च हों। जब भारत का विभाजन हुआ और पाकिस्तान का निर्माण हुआ, तो गोडसे गांधी जी से अत्यंत असंतुष्ट हो गए। उन्हें लगता था कि गांधी जी ने मुस्लिमों के प्रति अत्यधिक सहानुभूति दिखाई और उनके हितों के लिए हिंदुओं के अधिकारों की अनदेखी की। गोडसे का विश्वास था कि गांधी की नीतियाँ देश के विभाजन के लिए जिम्मेदार हैं। वे गांधी के अनशन और तुष्टिकरण नीति के विरोधी थे। उनका कहना था कि गांधी हमेशा मुसलमानों के पक्ष में झुकते हैं और हिंदू समाज को कमजोर बना रहे हैं। गोडसे ने गांधी की हत्या की योजना लंबे समय तक बनाई। 30 जनवरी 1948 को नई दिल्ली के बिड़ला हाउस में गांधी जी प्रार्थना सभा के लिए जा रहे थे, तभी गोडसे ने उनके पास जाकर तीन गोलियाँ दाग दीं। गांधी जी की वहीं मृत्यु हो गई। गोडसे ने मौके से भागने की कोशिश नहीं की और उसे तुरंत गिरफ्तार कर लिया गया। गिरफ्तारी के बाद उसने खुले तौर पर हत्या की जिम्मेदारी ली और कहा कि उसने यह काम “देश के हित” में किया है। मुकदमे के दौरान गोडसे ने कहा कि वह गांधी का सम्मान करता था, लेकिन उनकी नीतियों से असहमत था, क्योंकि गांधी ने देश को मुसलमानों के आगे झुका दिया। अदालत ने उसे दोषी करार दिया और 8 नवंबर 1949 को उसे मृत्यु दंड सुनाया गया। 15 नवंबर 1949 को गोडसे और उसके साथी नारायण आप्टे को अंबाला सेंट्रल जेल में फाँसी दे दी गई। गांधी जी की हत्या के बाद देश में गहरी नाराज़गी और शोक फैल गया। RSS और हिंदू महासभा पर प्रतिबंध लगाया गया और गांधी जी की विचारधारा को और अधिक बल मिला। बाद में गोडसे की छवि को लेकर समाज में विवाद होता रहा। कुछ लोग उसे अपराधी मानते हैं तो कुछ राष्ट्रवादी समूह उसे देशभक्त कहने की कोशिश करते हैं। परंतु इतिहासकारों का मानना है कि गांधी जी के हत्या ने भारत की आत्मा को झकझोर दिया और इस घटना ने अहिंसा के महत्व को और भी प्रबल बना दिया। गोडसे की यह कहानी केवल एक व्यक्ति की नहीं बल्कि विचारों की टकराहट की कहानी है — जहाँ एक ओर प्रेम, करुणा और अहिंसा का मार्ग था, वहीं दूसरी ओर कट्टरता, क्रोध और विभाजन की आग।
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